Electronic Voting Machines
ईवीएम को किसने बनाया-
इलेक्ट्रॉ निक वोटिंग मशीनें ढेरों बैठकें करने, प्रोटोटाइपों की परीक्षण-जांच करने एवं व्याजपक फील्डह ट्रायलों के बाद दो लोक उपक्रमों अर्थात भारत इलेक्ट्रॉ निक्स लिमिटेड, बेंगलूर एवं इलेक्ट्रॉ निक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया, हैदराबाद के सहयोग से निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार एवं डिजाइन की गई है। अब, इलेक्ट्रॉ निक वोटिंग मशीनें उपर्युक्तच दो उपक्रमों द्वारा विनिर्मित की जाती हैं।
ईवीएम अधिकतम 64 अभ्यर्थियों के लिए काम कर सकती है। एक बैलेटिंग यूनिट में 16 अभ्यमर्थियों के लिए प्रावधान है। यदि अभ्यर्थियों की कुल संख्याे 16 से अधिक हो जाती है तो पहली बैलेटिंग यूनिट के साथ-साथ एक दूसरी बैलटिंग यूनिट जोड़ी जा सकती है। इसी प्रकार, यदि अभ्येर्थियों की कुल संख्या 32 से अधिक हो तो एक तीसरी बैलेटिंग यूनिट जोड़ी जा सकती है और यदि अभ्यथर्थियों की कुल संख्या 48 से अधिक हो तो एक चौथी यूनिट अधिकतम 64 अभ्ययर्थियों के लिए काम करने हेतु जोड़ी जा सकती है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन-
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पांच-मीटर केबल द्वारा जुड़ी दो यूनिटों-एक कंट्रोल यूनिट एवं एक बैलेटिंग यूनिट-से बनी होती है। कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास होती है तथा बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखी होती है। बैलेट पेपर जारी करने के बजाए, कंट्रोल यूनिट का प्रभारी मतदान अधिकारी बैलेट बटन को दबाएगा। यह मतदाता को बैलेटिंग यूनिट पर अपनी पसंद के अभ्यर्थी एवं प्रतीक के सामने नीले बटन को दबाकर अपना मत डालने के लिए सक्षम बनाएगावर्ष 1989-90 में विनिर्मित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोगात्मक आधार पर पहली बार नवम्बर, 1998 में आयोजित 16 विधान सभाओं के साधारण निर्वाचनों में इस्तेमाल किया गया। इन 16 विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्रों में से मध्य प्रदेश में 5, राजस्थान में 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में 6 विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्र थे।
ईवीएम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगलूर एवं इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड; हैदराबाद द्वारा विनिर्मित 6 वोल्ट की एल्कलाइन साधारण बैटरी पर चलती है। अत:, ईवीएम का ऐसे क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है जहां पर बिजली कनेक्शन नहीं हैं।
ईवीएम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगलूर एवं इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड; हैदराबाद द्वारा विनिर्मित 6 वोल्ट की एल्कलाइन साधारण बैटरी पर चलती है। अत:, ईवीएम का ऐसे क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है जहां पर बिजली कनेक्शन नहीं हैं।
क्या ईवीएम के उपयोग से बूथ-कैप्च रिंग को रोका जा सकता है
बूथ कैप्चरिंग से तात्पर्य यदि यह है कि मत पेटियों या मत पत्रों को ले जाना या उन्हें क्षतिग्रस्त करना तो ईवीएम के उपयोग द्वारा उस बुराई को नहीं रोका जा सकता है क्यों्कि ईवीएम भी उपद्रवियों द्वारा बलपूर्वक भी ले जाए जा सकते हैं या क्षतिग्रस्तं किए जा सकते हैं। परन्तु यदि बूथ कैप्चलरिंग को उपद्रवियों द्वारा मतदान कर्मियों को धमकाने तथा मतदान पत्रों में प्रतीक पर मुहर लगाने तथा चंद मिनटों में भाग निकलने के मामले के रूप में देखा जाता है तो इसे ईवीएम के उपयोग द्वारा रोका जा सकता है। ईवीएम की प्रोग्रामिंग इस प्रकार की गई है कि मशीनें एक मिनट में केवल पांच मतों को ही दर्ज करेगी। चूंकि मतों का दर्ज किया जाना अनिवार्य रूप से कंट्रोल यूनिट तथा बैलेटिंग यूनिट के माध्य म से ही किया जाना, इसलिए उपद्रवियों की संख्या चाहे कितनी भी हो, वे केवल 5 मत प्रति मिनट की दर से ही मत दर्ज कर सकते हैं। मत पत्रों के मामले में, उपद्रवी एक मतदान केन्द्र के लिए निर्दिष्ट सभी 1000 विषम मत पत्रों को आपस में बांट सकते हैं, उन पर मुहर लगा सकते हैं, उन्हें् मत पेटियों में ठूंस सकते हैं तथा पुलिस बलों के अधिक संख्या में पहुंचने से पहले भाग सकते हैं। प्रत्ये क आधे घंटे में उपद्रवी अधिकतम 150 मतों को ही दर्ज कर सकते हैं और तब तक इस बात की संभावनाएं हैं कि पुलिस बल पहुंच जाए। इसके अतिरिक्त, पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी द्वारा मतदान केन्द्रव के भीतर जैसे ही कुछ बाहरी व्य क्तियों को देखा जाए तो उनके पास “बंद” बटन दबाने का विकल्पे हमेशा रहेगा। एक बार ‘बंद’ बटन दबा देने के पश्चा त कोई भी मत दर्ज करना संभव नहीं होगा और इससे बूथ पर कब्जा करने वालों का प्रयास निष्फल हो जाएगा।
ईवीएम के उपयोग के फायदे-
सबसे महत्वमपूर्ण फायदा यह है कि लाखों-करोड़ों की संख्याउ में मत पत्रों की छपाई से बचा जा सकता है क्यों कि प्रत्येैक अलग-अलग निर्वाचक के लिए एक मत पत्र के बजाय प्रत्येाक मतदान केन्द्र पर बैलेटिंग यूनिट पर केवल एक मत पत्र लगाया जाना अपेक्षित है। इसके परिणामस्व्रूप कागज, मुद्रण, पारवहन, भंडारण एवं वितरण की लागत के रूप में भारी बचत होती है। दूसरे, मतगणना बहुत तेजी से होती है और पारम्परिक प्रणाली के अंतर्गत औसतन, 30-40 घंटों की तुलना में 2 से 3 घंटों के भीतर परिणाम घोषित किए जा सकते हैं। तीसरे, ईवीएम मतदान प्रणाली के अंतर्गत कोई अमान्यण मत नहीं होता है। इसकी महत्ताप तब बेहतर तरीके से समझी जाएगी, जब यह याद किया जाए कि प्रत्येाक साधारण निर्वाचन में कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमान्यत मतों की संख्याि विजयी अभ्यार्थी एवं द्वितीय स्था्न-प्राप्तब अभ्योर्थी के बीच जीत के अंतर से अधिक होती है। इस सीमा की दृष्टि से निर्वाचकों की पसंद उस परिस्थिति में अधिक उचित तरीके से परिलक्षित होती है जब ईवीएम का इस्तेपमाल किया जाता है।
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